जापान-चीन यात्रा संस्मरण-82

चीन में धर्म जीवन पद्धति है
न में धर्म की स्थिति अन्य देशों जैसी नहीं है। हमारे यहां या अन्यत्र किसी को हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, यहुदी आदि धर्मों का अनुयायी बताया जाता है मगर चीन में एसा नहीं है। चीन में कोई व्यक्ति अपनी पारिवारिक और नैतिक समस्याओं के निराकरण के लिये कन्फ्यूशियानिज्म की शरण में चला जाता है, वही व्यक्ति स्वास्थ्य तथा मनोवैज्ञानिक चिन्ताओं के लिये ताओवाद अपना लेता है, अपने स्वजनों के अन्तिम संस्कार के लिये बौद्ध धर्म की परम्पराएं स्वीकार करता है और अन्य बातों के लिये वह स्थानीय देवी देवताओं की आराधना करता है।
वर्तमान में चीन में सभी धर्मों का अनुसरण किया जाता है। यहां के मुख्य धर्म हैं- बौद्ध, ताओ, इस्लाम व ईसाई। इनके अलावा अति अल्प संख्या में हिन्दू तथा यहुदी धर्मों के अनुयायी भी यहां हैं। आज से 4000 वर्ष पूर्व चीन में लोग अलग अलग देवताओं की पूजा करते थे जैसे मौसम के देवता या आकाश के देवता और इनसे उपर एक अन्य देवता शांग ली। इस जमाने में लोग यकीन करते थे कि उनके पूर्वज मरने के बाद देवता बन गये इसलिये हर परिवार अपने पूर्वजों को पूजता था। बाद में जाकर लोगों को यह विश्वास होने लगा कि सबसे बड़ा देवता स्वर्ग है जो तमाम अन्य देवताओं पर शासन करता है। स्वर्ग देवता अर्थात् तीयन ही चीन के सम्राट और साम्राज्ञी तय करता था।
2500 साल पहले चीनी धर्म में नये विचारों का आगमन हुआ। लाओ जू नामक दार्शनिक ने ताओवाद की स्थापना की जो बहुत लोकप्रिय हुआ। इस धर्म का मुख्य आधार यह था कि लोगों को जबर्दस्ती अपनी इच्छाएं नहीं पूरी करनी चाहिये वरन समझाईश और सहकार से जीना चाहिये। यह एक दर्शन भी था और धर्म भी। इसी काल में एक अन्य दार्शनिक कन्फ्यूशियस का उदय हुआ जिनका दर्शन ताओवाद से भिन्न था। इस वाद के अनुसार लोगों को अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिये, अपने नेताओं का अनुसरण करना चाहिये तथा अपने देवताओं पर श्रद्धा रखनी चाहिये। इस वाद का मूल मंत्र व्यवस्था थी। इन नये धर्मों के बावजूद लोग अपने प्राचीन धर्मों पर चलते रहे और पूर्वजों को पूजते रहे।
2000 वर्ष पूर्व बौद्ध धर्म का चीन में आगमन हुआ और चीनी जनजीवन में अत्यन्त लोकप्रिय हो गया। बौद्ध धर्म चीन का सर्वाधिक संगठित धर्म है तथा आज समूचे विश्व में सबसे अधिक बौद्ध अनुयायी चीन में ही है। कई चीनी ताओ तथा बौद्ध धर्म दोनों को एक साथ मानते हैं। ईसाई धर्म का आगमन 1860 में पहले अफीम युद्ध के दौरान हुआ। इस्लाम का पर्दापर्ण सन् 651 में यहां हुआ।
चीन में धर्म जीवन पद्धति है, यह दर्शन है और आध्यात्म है। चीन की जनवादी सरकार आधिकारिक रूप से नास्तिक है मगर यह अपने नागरिकों को धर्म और उपासना की स्वतत्रता देती है। लेनिन व माओ के काल में धार्मिक विश्वासों और उनकी अनुपालना पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। तमाम मन्दिर, पेगोडा, मस्जिदों और चर्चों को अधार्मिक भवनों में बदल दिया गया था। 1970 के अन्त में जाकर इस नीति को शिथिल किया गया और लोगों को धार्मिक अनुसरण की इजाजत दी जाने लगी। 1990 के बाद से पूरे चीन में बौद्ध तथा ताओ मन्दिरों के पुनर्निर्माण का विशाल कार्यक्रम शुरू हुआ। 2007 में चीनी संविधान में एक नई धारा जोड़कर धर्म को नागरिकों के जीवन का महत्वपूर्ण तत्व स्वीकार किया गया।
एक सर्वेक्षण के अनुसार चीन की 50 से 80 प्र.श. आबादी या 66 करोड़ से 1 अरब तक लोग बौद्ध हैं जबकि ताओ सिर्फ 30 प्र.श. या 40 करोड़ ही हैं। चूंकि अधिकांश चीनी दोनों धर्मों को मानते हैं इसलिये इन आंकड़ों में दोनों का समावेश हो सकता है। ईसाई चार से पांच करोड़ और इस्लाम को मानने वाले दो करोड़ के लगभग हैं अर्थात डेढ़ प्र.श.।
बौद्ध धर्म को सरकार का मौन समर्थन प्राप्त है। दो वर्ष पूर्व सरकार ने ही यहां विश्व बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया था। विश्व की सबसे बड़ी बौद्ध प्रतिमा हेनान में सन् 2002 में स्थापित की गई थी। यह एक सुखद आश्चर्य है कि विश्व की तीन सबसे बड़ी प्रतिमाएं भगवान बुद्ध की ही हैं। हेनान की प्रतिमा 420 फीट ऊ ंची है। दूसरे नम्बर पर मयमनार की 360 फीट ऊं ची बौद्ध प्रतिमा है जो गत वर्ष ही स्थापित की गई थी। जापान की 328 फीट ऊं ची बौद्ध प्रतिमा 1995 में स्थापित हुई थी।
चीन में बौद्ध सम्बन्धित सभी पर्वतों पर खनन कार्य पर प्रतिबंध लगा दिया गया है हालांकि तिब्बती बौद्ध पर जरूर कुछ रोक हैं। ये चौदहवें दलाई लामा के उत्तराधिकार को लेकर हैं जिन्हें विश्व बौद्ध सम्मेलन में भी नहीं बुलाया गया था। 14वें दलाई लामा देश से बाहर हैं इसलिये चीन 15वें दलाई लामा की नियुक्ति की सोच रहा है। 2007 में चीन ने बुद्ध के तिब्बती जीवित अवतारों पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
मुसलमान चीन में सातवीं शताब्दी में व्यापार करने के लिये आये और धीरे-धीरे समूचे आयात-िनर्यात पर कब्जा कर लिया। युवान वंश के दौरान लाखों की संख्या में मुसलमानों का चीन की तरफ पलायन हुआ। वर्तमान राजधानी बीजिंग का निर्माण एक मुस्लिम के नेतृत्व में ही शुरू हुआ था। मिंग वंश में राजा के प्रमुख वफादार जनरलों में मुस्लिम प्रमुख थे जिन्होंने मंगोलों के खिलाफ निर्णायक विजय हासिल की। शनै शनै मुस्लिम आप्रवासी तथा उनकी पीढ़ियां चीनी जनजीवन में घुल मिल गये। वे चीनी बोलने लगे, अपने नाम चीनी रखने लगे और चीनी संस्कृति व परम्पराओं को अपना लिया। क्विंग वंश के दौरान स्थितियां बदल गई, नई मस्जिदों का निर्माण रोक दिया गया और यात्राओं पर पाबन्दी लगा दी गई। मुसलमानों के दमन की नीतियों का परिणाम यह निकला कि एक के बाद एक 5 बगावतें हो गई। इन्हें दबाने के लिये मांचू सरकार ने नरसंहार कर दिया। एक बगावत में दस लाख लोग मारे गये, अन्य बगावतों में इससे भी ज्यादा लोग मारे गये। सरकारी अधिकारियों ने मुसलमानों का नामों निशां मिटाने की नीति अपना ली। क्विंग वंश के पतन के पश्चात् सुन यात सेन ने घोषणा कर दी कि देश समान रूप से सभी मुस्लिम जातियों यथा हान, मंचू, मंगोल और तिब्बतों का भी है। 1911 में तीन प्रान्तों पर मुस्लिम योद्धाओं का कब्जा हो गया।
आज चीन में इस्लाम का पुनरूत्थान हो रहा है। चीन के हर प्रान्त में मुस्लिम मिल जायेंगे। चीन के 55 मान्य अल्पसंख्यक समूहों में 10 समूह मुसलमानों के ही हैं। 35 हजार मस्जिदें-मजारें हैं और 45 हजार ईमाम। चीन में हिन्दुओं की संख्या बहुत कम है। चीन का पहला हिन्दू मन्दिर फोशन में बनाया गया है जो गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर की शैली का है। इस्कोन के भी कुछ केन्द्र चीन में हैं। (जारी)

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