जापान-चीन यात्रा संस्मरण-81

खरीददारी बीच में ही छोड़ होटल भागे
बड़ी मुश्किल से इस दुकान से निकला और वापस किसी दुकान में घुसने की गलती नहीं की। बाहर-बाहर से ही देखता रहा। इसी बीच एक एक करके हमारे साथी इधर-उधर से उपर-नीचे से मिलते रहे। मेरे साथी विष्णु नागर और आकाशवाणी के शंभू चौधरी हाथों में थैले लिये हंसते-हंसते आते नजर आये। नागर ने अपने लिये एक ब्लेजर और एक सूट लिया था। दोनों चीजें उन्हें दो हजार से भी कम रूपयों में मिल गई थी। शंभू ने जबर्दस्त भाव ताव करके इतने सस्ते में ये चीजें खरीदवाई थी इसीलिये वे हंस रहे थे। कहां इन चीजों के 50 हजार मांगे जा रहे थे और कहां 2 हजार से भी कम में ये चीजें ले आये थे।
सब लोग एकत्र हो गये तो हम बाहर निकल पड़े। तभी शीला भट्ट जल्दी में अन्दर आती नजर आई। मुझे देखती ही वे बोली, चलिये बाबूजी आपकी शोपिंग करवा देती हूं। मैंने कहा ये सब तो जा रहे हैं तो वे बोली एक गाड़ी अपने लिये रूक जायेगी। यह कहकर वे जल्दी से बेसमेन्ट में उतर गई। एसा लगता था जैसे वे यहां के चप्पे चप्पे से वाकिफ हैं। दरअसल वे कई बार चीन आ चुकी थीं और हर बार एक चक्कर तो इस मार्केट का लगता ही था। त्रियों के लिये तो यह मार्केट स्वर्ग था, उनकी पसन्द की और जरूरत की हर चीज नये से नये फैशन में यहां उपलब्ध थी। एक बार ये यहां घुस जायें तो निकलने का नाम ही न लें।
बेसमेन्ट के दूसरे तल में लेडिज बेग, पर्स आदि की दुकानें थी। अब वे मुझसे पूछने लगीं किस किस के लिये शोपिंग करनी है तो मैंने बताया कि 30 से 40 साल के बीच की उम्र की तो 3 बहुएं हैं, सात पोते-पोतियां हैं जिनमें दो किशोरियां हैं, एक 11 साल की लड़की है और 4 से 8 के बीच के 4 बच्चे हैं। वे हंस पड़ी तो मैंने उन्हें बताया कि मैं तो अविवाहित हूं यह सब मेरे भाई साहब का परिवार है। उन्हें शायद इस बात का पता था इसलिये उन्होंने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी और ठीक है कहकर कुछ अनुमान लगाने लगी। एक दुकान पर रूक कर वे बोली पहले बहुओं को निपटा देते हैं। यहां बड़े बड़े लेदर के झोलों टाईप पर्स मिल रहे थे, मुझे लगा जैसे ये बहुत ही पुराने जमाने की फैशन के हैं, मैंने उनसे कहा भी तो वे बोली आजकल ये बहुत चल रहे हैं, आपकी बहुओं को जरूर पसन्द आयेंगे। मैं चुप रह गया। उन्होंने तीन झोले लेकर भाव ताव करना शुरू कर दिया, वे एक दाम बता कर उस पर अड़ी रही जबकि दुकानवाली उस पर सहमत नहीं थी, मैं सोच रहा था जिस भी भाव देती है ले लें, मगर वे पहले भी यहां से खरीददारी कर चुकी थी इसलिये उन्होंने कहा नहीं चलो आगे चलते हैं। हम अगली दुकान पर बढ़े इसके पहले ही उनका मोबाइल बज उठा।
फोन मीडिया सेन्टर से था। होटल में कुछ ही मिनटों में प्रेस ब्रिफिंग होने वाली थी जिसमें प्रधानमंत्री केदिन भर के कार्यक्रमों और शिखर सम्मेलन के बारे में सबको बताया जाने वाला था। हमें तुरन्त होटल पहुंचने को कहा गया। सारी खरीददारी और भाव ताव भूल कर हम तुरन्त उपर पहुंचे और बाहर निकले। गाड़ी तक पहुंचे तो सब हमारी व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रहे थे क्यूंकि सबको प्रेस ब्रिफिंग में मौजूद रहने की तीव्रता हो गई थी। कहां तो हम एक अलग दुनिया में खरीददारी कर रहे थे और कहां अब पुनः होटल पहुंचने की जल्दी मची थी। यह एक पत्रकार का जीवन था जिसकी जिन्दगी में कभी स्थाइत्व नहीं होता, कब किस पल कहां दौड़ना पड़ जाये यह स्वयं उसे भी पता नहीं होता।
हमारा एक साथी अभी भी नहीं आया था, गाड़ी उसी के लिये रूकी थी, सब व्यग्र हो रहे थे मगर उसे छोड़ कर भी नहीं जा सकते थे। हमारी एक गाड़ी जा चुकी थी। हमारे दल में कई प्रतिस्पर्धी चेनलों और अखबारों के संवाददाता थे। एक चेनल का संवाददाता वहां पहुंच गया था तो दूसरी चेनल वाला जो हमारे साथ था बेचैन हो रहा था। वह एक पल की भी प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं था, पहले तो उसने हमारे गायब साथी को ढूंढने की कोशिश की, वह नहीं मिला तो उसने कहा-मैं टेक्सी करके पहुंच जाता हूं, आप लोग आते रहना, उसे जाते देख एक दो अन्य भी जाने लगे तो शीला ने उन्हें रोका और बोली कि उसे टेक्सी जल्दी मिलने वाली नहीं है।
बीजिंग में टेक्सियों की भरमार है। यहां तीन तरह की टेक्सियां चलती हैं इनमें लाल रंग की टेक्सियां सर्वाधिक है, इनका किराया भी अन्य से सस्ता है। हरे रंग की टेक्सियां थोड़ी महंगी होती हैं जो पर्यटकों के काम में आती है। काले रंग की टेक्सियां बड़ी बड़ी विलासी कारें होती हैं जिनका प्रयोग कोरपोरेट जगत द्वारा ज्यादा किया जाता है। यहां बाजार में जहां चाहे वहां टेक्सी को रोक कर बैठा नहीं जा सकता, इसके लिये आपको टेक्सी स्टेण्ड ही जाना पड़ेगा। कई बार टेक्सी स्टेण्ड पर भीड़ ज्यादा होती है और टेक्सियां कम हो तो इन्तजार करना पड़ता है। हमारे इस चेनल वाले साथी के साथ भी यही हुआ। थोड़ी ही देर में वह वापस हमारी गाड़ी के पास आ गया और बोला कि वहां तो काफी भीड़ है। शीला बोली मैंने तो पहले ही कहा था।
हम लोग वेन का दरवाजा खोले बैठे थे, भीड़ भाड़ का इलाका था इसलिये यहां भिखारी भी बहुत थे। कई हमारी गाड़ी के समक्ष आ कर खड़े हो रहे थे और भीख मांग रहे थे। यह बिल्कुल अपने यहां जैसा ही दृश्य था। थोड़ी ही देर में हमारा गायब साथी आ गया। सबने उसको उलाहना दिया और गाड़ी को तुरन्त रवाना करवाया। होटल पहुंचते ही भागते भागते मीडिया सेन्टर पहुंचे, वहां सब को मौजूद देखा तो हमें यही लगा कि ब्रिफिंग खत्म हो गई है। आज सुबह से ही प्रधानमंत्री के किसी कार्यक्रम में भाग लेने का मौका हमें नहीं मिला था इसलिये किसी ने कोई खबर भी नहीं बनाई थी। यह मौका भी हाथ से निकल जाने से सब निराश हो गये मगर वहां उपस्थित किसी एक ने जब यह कहा कि ब्रिफिंग में अभी आधा घंटा और बाकी है तब सब की जान में जान आई। अब हम शिकायत करने लगे कि हमें फालतू ही दौड़ाया, अच्छी खासी खरीददारी कर रहे थे, सब छोड़ कर यहां भागे। शीला ने मुझे तसल्ली दी कि कोई बात नहीं अभी कल का पूरा दिन हमारे पास है। मुझे भी यही संतोष था।
थोड़ी देर में ब्रिफिंग हो गई तो सब के सब अपने अपने दफ्तरों को समाचार प्रेषित करने में लग गये। घंटे-दो घंटे कैसे निकल गये कुछ भी पता नहीं चला। रात का खाना होटल में ही था। चीन में स्थित भारतीय राजदूत निरूपमा राव की तरफ से यह भोज भारतीय प्रतिनिधि मण्डल के लिये आयोजित था। भोजन में भारतीय व्यंजन विशेष तौर पर बनाये गये थे। हम सबने अत्यन्त तसल्ली से भरपेट भोजन किया। निरूपमा राव सभी से एक एक करके मिली और बातचीत की।
हम खाना खा रहे थे तभी दो वेटर एक बहुत बड़ी प्लेट लेकर आये। इस प्लेट में एक भुनी हुई बतख थी। इसे एक टेबल पर रख दिया गया और लोग चाकू से काट काट कर इसके टूकड़े अपनी प्लेट में लेने लगे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मैं जब पाकिस्तान यात्रा पर गया था तब पहली बार इस्लामाबाद में ऐसे ही एक भुने हुए बकरे से मांस काट कर लोगों को अपनी प्लेट में लेते देखा था तो मुझे उल्टी आ गई थी लेकिन उसके बाद तो एसे कई मौके पड़े जिससे मैं मजबूत हो गया।
खाने में बहुत देर हो गई। कुछ लोग कहीं घूमने का कार्यक्रम बना रहे थे। हम इसी इन्तजार में मीडिया सेन्टर में बैठ गये। यहां पिछली रात की तरह ही चीनी जन जीवन के बारे में चर्चा चल रही थी। मैंने अपने लिये विशेष कॉफी बनवाई और बैठ गया। चर्चा चीन के धर्म पर चल रही थी। (जारी)

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