१८ दिनों की यात्रा सकुशल सम्पन्न
सुरेश गोयल
सिंगापुर में समुद्री क्षेत्र को भू क्षेत्र में बदलने की योजनाएं सतत रूप से जारी हैं जिसका परिणाम है कि १९६० में इसका भू क्षेत्र जो ५८१ वर्ग कि.मी. का था वह १९६० में ७०४ वर्ग कि.मी. का हो गया। आगामी वर्षों में इस भू क्षेत्र के १०० वर्ग कि.मी. और बढऩे की संभावना है। हमारे यहां मुम्बई जैसे क्षेत्रों में भी इस तरह की योजनाएं सतत रूप से जारी रखी जा सकती हैं। सिंगापुर में इस योजना के तहत समुद्र में छितराये छोटे छोटे द्वीपों के आस पास के पानी को पाट कर इन द्वीपों को एक दूसरे में विलीन कर दिया जाता है और एक बड़े द्वीप का निर्माण कर दिया जाता है जिससे वहां का कारगर विकास हो सके। सिंगापुर का जुरोंग द्वीप इसी तरह विकसित किया गया। सिंगापुर में मुख्य द्वीप समेत कुल ६३ छोटे बड़े द्वीप हैं।
शीघ्र ही हमारी उड़ान की घोषणा हो गई। हम विमान में प्रविष्ठ हुए। विमान के अग्र भाग में फस्र्ट क्लास था और इसके पीछे इकोनोमी क्लास। हमारी सीटें इकोनोमी क्लास में थी। फस्र्ट क्लास में दो-दो की सीटों के केबिन इस तरह बने हुए थे कि ये एक दूसरे से अलग हो गये थे और हर केबिन की अपनी निजता हो गई थी।
हमारी सीटों के सामने छोटे छोटे टी.वी. स्क्रीन लगे हुए थे, इनके बटन सीट के हत्थे पर थे। इयर प्लग लगाकर हर यात्री अलग अलग कार्यक्रम देख सकता था। टी.वी. में दर्जनों नई पुरानी हिन्दी व अंग्रेजी की फिल्में, टी.वी. शो तथा गीत भरे हुए थे। हिन्दी फिल्मों में जोधा अकबर और फैशन जैसी फिल्में भी थी। अधिकांश यात्री जोधा अकबर ही देख रहे थे।
उड़ान के अन्दर पहले नाश्ता और फिर भोजन परोसा गया। खाना ठीक था। साथ लाया खाने का सामान अभी भी हमारे पास बचा हुआ था, हालांकि इनमें से कई तरह की सामग्रियां एक एक करके खत्म हो चुकी थी। इस सामान में से भी कुछ निकाल कर खाया।
लम्बी उड़ान के बाद अन्तत: हम पुन: भारत भूमि पर उतरे। मुम्बई के छत्रपति शिवाजी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ज्यूं ही हमने कदम रखे तो हमें भारत में होने का एहसास हो गया। हवाई अड्डे की व्यवस्था और साज सज्जा की सीधी तुलना सिंगापुर, बेंकोक और होंगकोंग के हवाई अड्डों से हो रही थी जिनके समकक्ष मुम्बई हवाई अड्डा कहीं नहीं ठहरता।
सामान ट्रोलियों में भरकर हम इमीग्रेशन काउन्टरों पर पहुंचे। यहां की लाल फीताशाही और बिना मतलब की पूछताछ से सब परेशान हो रहे थे। मेरा नम्बर आया तो अधिकारी ने मेरा फार्म वापस लौटा दिया कि एड्रेस पूरा भरो, मैैंने सूरजपोल अन्दर, उदयपुर लिखा था जो उसे अपर्याप्त लगा। मैंने कहा एड्रेस पूरा है तो वह चिढ़ गया। बोला गांव कौन सा हैं, तहसील कौन सी है, जिला कौन सा है, मैंने कहा सब उदयपुर है, यहां तक कि संभाग भी उदयपुर है तो वह मानने को तैयार ही नहीं। मैंने पासपोर्ट में लिखा यही पता जब उसे बताया तब उसे तसल्ली हुई। मेरी तरह अन्य लोगों को भी इसी तरह के सवालों से परेशान किया जा रहा था।
ट्रोलियां ले ले कर बाहर निकले तो हवाई अड्डे पर जगह जगह पुनर्निर्माण की प्रक्रिया जारी थी जिससे यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था। जैसे तैसे बाहर निकले तो महीप मिल गया। वह हमें लेने आया था। हमें काफी दूर तक सामान उठा कर ले जाना पड़ा इसके पश्चात् महीप गाड़ी लेने गया। महीप ने गाड़ी दूर खड़ी की थी क्यूंकि यहां गाड़ी खड़ी करना मना था। महीप गाड़ी लेकर आया और हम सामान डालकर रवाना हो ही रहे थे कि पुलिस वाला आ गया। महीप ने उसे समझाया बुझाया और हम आगे बढ़े।
थके पचे घर पर आकर सो गये। अगले दिन २३ मार्च को हम मुम्बई में ही रूके। महिलाओं ने पूरे दिन का उपयोग बची खुची खरीददारी पूरी करने में किया। इनके आश्चर्य का ठिकाना उस वक्त नहीं रहा जब सिंगापुर से लाई हुई कई वस्तुएं, वो की वो यहां आधे-पौने दामों में उपलब्ध थी। २४ मार्च २००९ को वापस उदयपुर हेतु किंगफिशर की उड़ान ली और ५ देशों की १८ दिन की यात्रा कर हम सकुशल वापस घर लौटे। (समाप्त)
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