सुदूर पूर्व यात्रा संस्मरण-१२४

१८ दिनों की यात्रा सकुशल सम्पन्न
सुरेश गोयल

सिंगापुर में समुद्री क्षेत्र को भू क्षेत्र में बदलने की योजनाएं सतत रूप से जारी हैं जिसका परिणाम है कि १९६० में इसका भू क्षेत्र जो ५८१ वर्ग कि.मी.  का था वह १९६० में ७०४ वर्ग कि.मी. का हो गया। आगामी वर्षों में इस भू क्षेत्र के १०० वर्ग कि.मी. और बढऩे की संभावना है। हमारे यहां मुम्बई जैसे क्षेत्रों में भी इस तरह की योजनाएं सतत रूप से जारी रखी जा सकती हैं। सिंगापुर में इस योजना के तहत समुद्र में छितराये छोटे छोटे द्वीपों के आस पास के पानी को पाट कर इन द्वीपों को एक दूसरे में विलीन कर दिया जाता है और एक बड़े द्वीप का निर्माण कर दिया जाता है जिससे वहां का कारगर विकास हो सके। सिंगापुर का जुरोंग द्वीप इसी तरह विकसित किया गया। सिंगापुर में मुख्य द्वीप समेत कुल ६३ छोटे बड़े द्वीप हैं।
शीघ्र ही हमारी उड़ान की घोषणा हो गई। हम विमान में प्रविष्ठ हुए। विमान के अग्र भाग में फस्र्ट क्लास था और इसके पीछे इकोनोमी क्लास। हमारी सीटें इकोनोमी क्लास में थी। फस्र्ट क्लास में दो-दो की सीटों के केबिन इस तरह बने हुए थे कि ये एक दूसरे से अलग हो गये थे और हर केबिन की अपनी निजता हो गई थी।
हमारी सीटों के सामने छोटे छोटे टी.वी. स्क्रीन लगे हुए थे, इनके बटन सीट के हत्थे पर थे। इयर प्लग लगाकर हर यात्री अलग अलग कार्यक्रम देख सकता था। टी.वी. में दर्जनों नई पुरानी हिन्दी व अंग्रेजी की फिल्में, टी.वी. शो तथा गीत भरे हुए थे। हिन्दी फिल्मों में जोधा अकबर और फैशन जैसी फिल्में भी थी। अधिकांश यात्री जोधा अकबर ही देख रहे थे।
उड़ान के अन्दर पहले नाश्ता और फिर भोजन परोसा गया। खाना ठीक था। साथ लाया खाने का सामान अभी भी हमारे पास बचा हुआ था, हालांकि इनमें से कई तरह की सामग्रियां एक एक करके खत्म हो चुकी थी। इस सामान में से भी कुछ निकाल कर खाया।
लम्बी उड़ान के बाद अन्तत: हम पुन: भारत भूमि पर उतरे। मुम्बई के छत्रपति शिवाजी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ज्यूं ही हमने कदम रखे तो हमें भारत में होने का एहसास हो गया। हवाई अड्डे की व्यवस्था और साज सज्जा की सीधी तुलना सिंगापुर, बेंकोक और होंगकोंग के हवाई अड्डों से हो रही थी जिनके समकक्ष मुम्बई हवाई अड्डा कहीं नहीं ठहरता।
सामान ट्रोलियों में भरकर हम इमीग्रेशन काउन्टरों पर पहुंचे। यहां की लाल फीताशाही और बिना मतलब की पूछताछ से सब परेशान हो रहे थे। मेरा नम्बर आया तो अधिकारी ने मेरा फार्म वापस लौटा दिया कि एड्रेस पूरा भरो, मैैंने सूरजपोल अन्दर, उदयपुर लिखा था जो उसे अपर्याप्त लगा। मैंने कहा एड्रेस पूरा है तो वह चिढ़ गया। बोला गांव कौन सा हैं, तहसील कौन सी है, जिला कौन सा है, मैंने कहा सब उदयपुर है, यहां तक कि संभाग भी उदयपुर है तो वह मानने को तैयार ही नहीं। मैंने पासपोर्ट में लिखा यही पता जब उसे बताया तब उसे तसल्ली हुई। मेरी तरह अन्य लोगों को भी इसी तरह के सवालों से परेशान किया जा रहा था।
ट्रोलियां ले ले कर बाहर निकले तो हवाई अड्डे पर जगह जगह पुनर्निर्माण की प्रक्रिया जारी थी जिससे यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था। जैसे तैसे बाहर निकले तो महीप मिल गया। वह हमें लेने आया था। हमें काफी दूर तक सामान उठा कर ले जाना पड़ा इसके पश्चात् महीप गाड़ी लेने गया। महीप ने गाड़ी दूर खड़ी की थी क्यूंकि यहां गाड़ी खड़ी करना मना था। महीप गाड़ी लेकर आया और हम सामान डालकर रवाना हो ही रहे थे कि पुलिस वाला आ गया। महीप ने उसे समझाया बुझाया और हम आगे बढ़े।
थके पचे घर पर आकर सो गये। अगले दिन २३ मार्च को हम मुम्बई में ही रूके। महिलाओं ने पूरे दिन का उपयोग बची खुची खरीददारी पूरी करने में किया। इनके आश्चर्य का ठिकाना उस वक्त नहीं रहा जब सिंगापुर से  लाई हुई कई वस्तुएं, वो की वो यहां आधे-पौने दामों में उपलब्ध थी। २४ मार्च २००९ को वापस उदयपुर हेतु किंगफिशर की उड़ान ली और ५ देशों की १८ दिन की यात्रा कर हम सकुशल वापस घर लौटे। (समाप्त)

सुदूर पूर्व यात्रा संस्मरण-१२३

टर्मिनल ट्रांसफर के लिये शानदार स्काई ट्रेन
सामने सोफे लगे थे। उन्हीं पर मैं जाकर बैठ गया तब अधिकारी वापस गुर्राया, सामान कहां है, मैंने कहा-बाहर रखा है तो वह बोला लेकर आओ। मैं बाहर गया और एक ट्रोली में एक अटेची व बेग डालकर वापस अन्दर आया। मुझे देखकर अधिकारी वापस चिढ़ा-पर्ची लेकर बैठो। यहां पर्ची देने वाला कोई नजर नहीं आ रहा था, मैं इधर-उधर देखकर परेशान हो रहा था, सामने खड़ी लड़की को मेरे से सहानुभूति हो गई, उसने एक मशीन की तरफ इशारा किया और फुसफुसा कर बोली-पर्ची उस मशीन से निकालो, एसा लगता जैसे वह लड़की भी अधिकारी से खौफ खाई हुई थी।
मैं मशीन के पास गया और एक बटन दबाया तो सर्र सर्र करता एक कागज मशीन से निकल पड़ा, इस पर २ नम्बर लिखे थे, यही पर्ची थी। इसे लेकर मैं सोफे पर बैठ गया। सामने इलेक्ट्रोनिक डिस्प्ले पर एक नम्बर जगमगा रहा था। लड़की का काम खत्म हो गया तो वह अपनी अटेची लेकर निकल गई। उसक जाते ही डिस्प्ले पर दो नम्बर जगमगाने लगा। मैं अपनी ट्रोली लेकर अधिकारी के पास गया तथा पासपोर्ट, टिकट और रिफण्ड के कागजात उसे सौंपे। अधिकारी ने मुस्करा कर मेरा अभिवादन किया तो मैं उसे देखता ही रह गया, अभी कुछ क्षणों पूर्व जिसका रौद्र रूप मैंने झेला था वही सौजन्यता की प्रतिमूर्ति बन उपस्थित था।
अधिकारी ने कागजात देखते हुए पूछा कि अटेची में क्या है, मैंने बताया कि कपड़े लत्ते हैं और कुछ खरीदारी का सामान है। उसने पूछा क्या सामान खरीदा, तो मैंने बताया कि बच्चों के लिये कपड़े और घर का कुछ सामान है। उसने फटाफट छापें लगा कर हस्ताक्षर किये और कागजात मुझे वापस लौटा दिये। कागज वापस लेते हुए मैंने पूछा कि रिफण्ड कब और कैसे मिलेगा तो अधिकारी ने बताया कि आपके पते पर बेंक ओफ इण्डिया का ड्राफ्ट आ जायेगा, इसमें कुछ महीने तो लग ही जाते हैं। मैं उसे धन्यवाद दे कर खुशी खुशी अपने साथियों के पास लौटा, ये सब लोग श्ीाशे की दीवार से अन्दर का नजारा देख रहे थे।
यह काम निपटने के बाद अब बोर्डिंग पास लेने का भारी काम था। हमारा सामान बढ़ गया था इसलिये चिन्ता थी कि अतिरिक्त शुल्क नहीं लग जाये। हमारी उड़ान जेट एयरवेयज से थी जो ज्यादा सामान स्वीकारती है फिर भी धुक धुकी तो लगी हुई ही थी। मुम्बई की तरह यहां भी जेट के काउन्टर पर बहुत बड़ी लाईन लगी थी पर प्रीमीयर क्लब मेम्बर्स के लिये अलग से काउन्टर बना था जो खाली पड़ा था। मेरे पास जेट का प्रीमीयर कार्ड था, मुम्बई में तो इसे इस्तेमाल नहीं किया था पर यहां इस्तेमाल करने की सोची। मैंने सब साथियों को ट्रोलियां लेकर मेरे पीछे आने को कहा और मैं खाली काउन्टर की तरफ बढ़ गया। मैंने ज्यूं ही कार्ड बताया, काउन्टर पर बैठी महिला ने अतिरिक्त सौजन्यता बताते हुए मेरा स्वागत किया।
इधर ज्यूं ही हम सब लोग इस काउन्टर की तरफ बढ़े तो लाईन में लगे लोग शोर मचाने लगे, सभी भारतीय ही थे। इनमें से एक व्यक्ति तो अत्यन्त मुखर होकर जोर जोर से चिल्लाने लगा। आस पास की अन्य एयरलाइन्स के काउन्टरों पर खड़े यात्री भी इधर देखने लगे कि क्या हो गया है। मैं अपने पासपोर्ट और टिकट देकर चुपचाप खड़ा रहा। इस बीच जेट के एक अधिकारी ने जाकर उस व्यक्ति को समझाया कि हमारे पास प्रीमीयर कार्ड है और यह काउन्टर एसे कार्डधारियों के लिये ही है।
हमारा सारा सामान तुल गया लेकिन लड़की कुछ नहीं बोली वरन् पूछ बैठी और सामान है क्या। इस पर मैंने अपने साथियों से कहा कि हाथ का कुछ सामान लगेज में डालना चाहो तो डाल दो, इस पर सबका एक एक बेग और डाल दिया। अब लड़की बोली कि यह तो ज्यादा हो जायेगा तो मैंने कहा आप जितना ले सकते हो ले लो बाकी निकाल दो। लड़की बहुत उदार थी, बोली-कोई बात नहीं, चल जायगा वैसे भी आपके पास प्रीमीयर कार्ड हैं। मैंने उसे धन्यवाद दिया और बोर्डिंग पास लिये।
हमारे पास हाथ का सामान बहुत कम रह गया था, इसे एक ट्रोली में डाल हम इमीग्रेशन की तरफ बढ़े। यहां शीघ्रता से काम हो गया तो सिक्यूरिटी चेक की तरफ बढ़े। यहां भी ज्यादा सख्ती नहीं थी। यहां से निकल कर हम सीधे अपनी उड़ान के द्वार पर पहुंचे। यह टर्मिनल का आन्तरिक भाग था जो बाहरी भाग से भी अधिक उत्कृष्ट और लालित्यपूर्ण था। समूचा परिसर शानदार कारपेट से युक्त था। उड़ानों के विभिन्न द्वार इतनी अधिक दूरी पर थे कि बुजुर्ग यात्रियों को एयरपोर्ट कर्मी गोल्फ कार्ट में बिठाकर ले जा रहे थे। किसी भी अन्य एयरपोर्ट पर एसा दृश्य नहीं देखा था। अन्य एयरपोर्टों पर तो सिक्यूरिटी के बाद ट्रोलियां सुलभ नहीं होती मगर यहां हाथ के सामान के लिये छोटी छोटी ट्रोलियां उपलब्ध थी। इन ट्रोलियों को भी एक साथ इक_ा कर ले जाने के लिये एक छोटा सा स्कूटर था जिस पर खड़े होकर मात्र एक व्यक्ति तमाम ट्रोलियों को ठेल कर ले जा रहा था।
यहां ड्यूटी फ्री शोप्स और रेस्टोरेन्ट्स की भरमार थी। सभी एक से अद्वितीय एक। हमारी उड़ान में समय था, मगर यहां प्रतीक्षा करते क्षण भर के लिये भी एसी व्यग्रता नहीं हो रही थी कि इतना समय कब गुजरेगा बल्कि एसा लग रहा  था जैसे यहीं रह जाओ। एयरपोर्ट के विभिन्न टर्मिनलों से यात्रियों को इधर उधर लाने ले जाने के लिये एयरपोर्ट की अपनी स्काई ट्रेन है। इसके ७ स्टेशन हैं तथा यह निशुल्क सेवा है। हम जहां बैठे थे उसके सामने ही इसका स्टेशन था। हमारे देखते देखते ही कई ट्रेनें आई और चली गई। (अगले अंक में समाप्त)

सुदूर पूर्व यात्रा संस्मरण-१२१

घन्टों प्रतीक्षा के बाद निराशाजनक शो
द्वीप में ही मत्स्य सिंह (मर लॉयन) की २३ फीट ऊं ची प्रतिमा थी जो हमें केबल कार द्वारा आते हुए तथा स्काई टावर से भी नजर आई थी। पर्यटक इस प्रतिमा के उपर तक जा सकते थे। यहां से सिंगापुर का विहंगम दृश्य अत्यन्त सुन्दर दिखाई देता है। हम लोग इस प्रतिमा पर नहीं चढ़े, वैसे पूरे द्वीप से यह चारों तरफ से दिखाई दे रही थी, वैसे भी उपर कुछ खास था नहीं, सिर्फ दृश्य था जो हम इससे उपर अवस्थित केबल कार और स्काई टावर से देख चुके थे।
धीरे धीरे शाम गहराने लगी। समुद्र किनारे आयोजित कार्यक्रम हेतु कतारें लगना शुरू हो गई। अब तक काफी लोग एकत्र हो चुके थे। एक साथ ढाई हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था थी इसलिये लोगों का रेला उमड़ रहा था। हम भी लाईन में लग गये। जोन ने हमारे टिकिट लाकर हमें दे दिये। लाईन में काफी देर तक खड़ा रहना पड़ा। हम लोग आगे आगे ही थे इसलिये व्यग्रता और  भी तेज थी। अन्तत: फाटक खोली गई और हम अन्दर प्रविष्ठ हुए। यहां समुद्र किनारे थियेटर नुमा बेन्चें लगी हुई थी। हम अन्तिम बेन्च पर बैठ गये जो सबसे ऊं ची थी। कई लोग भाग भाग कर आगे की बेन्चों पर बैठे जिससे समीप होने से शो का मजा अच्छी तरह ले सकें। हमें भी यह ख्याल आया पर एक बार जहां बैठ गये वहां से उठने का मन किसी का नहीं हुआ।
दर्शकों में भारी तादाद में भारतीयों की भी उपस्थिति थी। हमारे आगे की बेन्च पर सभी भारतीय पर्यटक ही बैठे थे। ये केसरी टूर कम्पनी के माध्यम से यात्रा कर रहे थे। सबके हाथों में एक थैला था जिस पर केसरी लिखा हुआ था। सभी लोग अपने अपने थैलों से नमकीन, पपडिय़ां, चकलियां, बिस्कुट, सूखे मेवे आदि निकाल निकाल कर खा रहे थे। इन्हें देख कर मेरे मुंह में पानी आ रहा था।  मैंने अपने आप पर बहुत नियंत्रण किया वरना अपने आगे बैठे सज्जन से थोड़ा नमकीन मांग ही बैठता। मेरे स्वभाव में यह खामी है, कई अन्य अवसरों पर लोगों को खाते देखते भी एसी ही इच्छा होती है पर हर बार मैं इस पर काबू पा लेता हूं।
हम लोग आपस में मेवाड़ी में ही बात कर रहे थे। मैं तो हवाई जहाज में एयर होस्टेस से भी मेवाड़ी में ही बोलता हूं। मजा तो एक बार तब आया जब एक एयर होस्टेस ने मेरे मेवाड़ी बोलने पर जवाब मेवाड़ी में ही दिया, वह भी शायद राजस्थान की ही थी। यहां हम लोग बेन्च पर बैठे बैठे इधर उधर की बातें कर रहे थे तो हमारे आगे बैठे सज्जन तुरन्त घूमे और मेवाड़ी में ही पूछ बैठे, हम कहां के हैं। उन्हें बताया कि हम उदयपुर के हैं तो वे बोल पड़े हम नागौर के हैं पर अब महाराष्ट्र में रहते हैं, ये लोग विदर्भ साइड के थे और राजस्थान छोड़े इन्हें कई बरस बीत गये थे। ये पूरी तरह मराठी हो चुके थे। इसके बाद तो काफी देर तक इनसे और इनके साथियों से बातचीत होती रही। ये लोग अब भी थैलों से कुछ न कुछ निकाले खाये जा रहे थे और मैं इनका मुंह ताके जा रहा था, इन्हें देख पेट में चूहों का संग्राम बढ़ता जा रहा था, मैं अपेक्षा कर रहा था कि सौजन्यतावश हमें भी ये लोग कुछ नाश्ता ओफर करेंगे पर एसा कुछ नहीं हुआ।
थोड़ी ही देर में शो शुरू हो गया। यह अत्यन्त निराशाजनक और नीरस प्रदर्शन था। हमारे पास पांच-सात लड़के लड़कियां खड़े हो गये और वे पश्चिमी धुनों व गीतों पर नाचने लगे। दर्शकों में भारतीयों की भारी उपस्थिति को देखते हुए यदि आयोजक यहां हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतों पर प्रस्तुति दे तो शायद यह कार्यक्रम बहुत पसन्द किया जाय। युवकों के नाच गानों के साथ लेजर द्वारा आकाश में विभिन्न आकृतियां उकेरी जा रही थी। यह भी बकवास थी। इतनी बढिय़ा जगह पर एसा लचर प्रदर्शन और संयोजन बहुत निराश कर रहा था। समुद्र में दो तरफ से दो अलग अलग जहाज हमारे सामने खड़े हो गये। अब तक एकदम अन्धकार हो चुका था। यकायक हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रही नृत्य नाटिका के पाश्र्व में जहाजों से आतिशबाजी होने लगी। गौर से देखने पर पता चला कि यह आतिशबाजी नहीं थी वरन् लेजर द्वारा विद्युत प्रकाश में प्रस्तुत फव्वारे थे। ध्ीारे धीरे ये फव्वारे  विभिन्न रूप लेने लगे तथा नृत्य नाटिका के कलाकारों द्वारा गाये जा रहे गीतों की धुन पर थिरकने लग। थोड़ी देरे के लिये हमें अच्छा लगा कि इतनी देर की प्रतीक्षा के बाद कुछ तो मनोरंजन हुआ। फव्वारों का यह शो थोड़ी देर ही चला और इनकी जगह भव्य आतिशबाजी ने ले ली। हालांकि होंगकोंग में डिजनीलेण्ड में देखी आतिशबाजी का यह एक अंश भी नहीं थी पर इतनी देर से नृत्य नाटिका का उबाऊ  कार्यक्रम झेलने के मुकाबले तो यह बेहतर ही थी। आतिशबाजी की समाप्ति के साथ ही शो भी समाप्त हो गया और सभी लोग उठ गये। एक साथ इतने लोग बाहर निकलने लगे तो बाहर  के रास्ते पर जबर्दस्त भीड़ हो गई।  हम लोग इस भीड़ में फंस गये। चारों तरफ लोग ही लोग थे, हमने एक तरफ निकल कर थोड़ी प्रतीक्षा करने की सोची मगर बाहर निकल नहीं पाये। लोगों के धक्कों के साथ ही आगे बढ़ते रहे और बाहर निकले तब जान में जान आई। (जारी)

सुदूर पूर्व यात्रा संस्मरण-११९

मेरीन टनल व डोल्फीन लेगून का मजा लिया
ओशन पार्क में सबसे पहले हम ओशेनेरियम देखने गये। यह एक तरह का विशाल एक्वेरियम था जिसमें मछलियों के अलावा विभिन्न प्रकार के समुद्री जीव जन्तु अपने स्वाभाविक वातावरण में प्रदर्शित थे। यहां कम से कम २५० प्रजातियों की २५०० मछलियां थी। अन्दर घुसते ही छोटे छोटे पानी के पूल बने हुए थे जिनमें स्टार फिश, स्टिंग रे, इल आदि मछलियां थी। ये टच पूल थे जिन्हें दर्शक छू सकते थे। यहीं छोटी छोटी बेबी शार्क मछलियां भी थी। दर्शक इन्हें छू रहे थे मगर छूते ही झटके से वापस हाथ भी बाहर निकाल रहे थे पर किसी की भी हिम्मत बेबी शार्क को छूने की नहीं हो रही थी।
यहां से आगे बढ़े तो नीचे सीढिय़ां उतर कर मुख्य ओशेनेरियम था। यहां एक स्वचालित ट्रेवलेटर था जिस पर खड़े जाने पर यह अपने आप आगे बढ़ता रहता था। यह एयरपोर्ट पर देखे कन्वेयर बेल्टों जैसा ही था लेकिन उच्च गुणवत्ता का था। सीढिय़ां उतरते ही हम  ट्रेवलेटर पर आ गये। आगे एक टनल थी जिसके दायें, बायें और उपर अर्थात् तीनों तरफ शीशे के भीतर विभिन्न प्रकार के जलचर तैर रहे थे। टनल ८३ मीटर लम्बी थी, ज्यूं ज्यूं हम आगे बढ़ते जा रहे थे त्यूं त्यूं हमारे इर्द गिर्द बड़ी बड़ी मछलियां, कछुए, सांप और अन्य समुद्री जीव पानी में तैरते हुए उभर रहे थे। कई नटखट मछलियां तो हमारे साथ साथ चलने का प्रयास कर रही थी। सुरंग से बाहर निकल कर वापस सीढिय़ां चढ़ कर उपर जाना था लेकिन यहां पर लिफ्ट नजर आ गई तो हमने लिफ्ट ली और उपर आ गये। लिफ्ट सीधी एक शो रूम में खुलती थी, बाहर निकलने का रास्ता भी इसी शो रूम से हो कर ही जाता था जिसका सीधा अर्थ यह था कि  यहां आने वाले हर पर्यटक को शो रूम में आना ही पड़ता था। शो रूम में इतनी आकर्षक वस्तुएं थी कि कोई भी इन्हें खरीदने का लोभ संवरण कर नहीं पाता था, हालांकि हमारे जैसे भी भी कई लोग होते ही थे जो एसी जगहों पर जेब ढीली करने से बच जाते थे।
दोपहर का समय हो गया था। सबको भूख लगने लगी थी, खाने पीने का सामान हम साथ लाये थे पर वे बेग वेन में रह गये थे। अब सब लोग अफसोस करने लगे कि ध्यान नहीं रखा वरना केबल कारों में ये बेग आसानी से ला सकते थे, जोन ने भी हमें नहीं बताया। अब सब लोग जोन को कोसने लगे तो जोन ने कहा कि हम लोग लेगून झील में डोल्फीन शो देखने जा रहे हैं वहां खाने पीने की कई चीजें मिल जायेंगी। यहां से जोन हमें डोल्फीन लेगून ही ले गया। यहां डोल्फीन मछलियों के करतब होने वाले थे मगर उसमें अभी समय था। यहां एक रेस्टोरेन्ट जरूर था मगर सारी सामग्री नान वेज ही मिल रही थी। जोन ने तो फटाफट अपना आर्डर दिया और सामान लेकर एक टेबल पर बैठकर खाने लगा। हमारे लायक सिर्फ ब्रेड सेण्डविच ही नजर आ रहे थे मगर उनके बीच में कहीं नोन वेज नहीं हो इसी की आशंका थी। हमने जोन से कहा कि वह जरा इसका खुलासा कर ले तो उसने चीनी भाषा में वेटरों से बात की और हमें आश्वस्त किया कि उसमें सिर्फ सलाद और चटनी है। हमने पहले एक सेण्डविच लिया और खा कर देखा, ठीक लगा तो फिर सब लोगों के लिये लिया मगर इनसे तृप्ति नहीं हुई।
धूप बहुत तेज पड़ रही थी और झील किनारे की रेत से गर्मी और भी बढ़ गई थी। कहीं छांव भी नहीं थी। झील किनारे शामियाने लगे थे जिनके नीचे कुर्सियां लगी हुई थी। लोग आगे बैठने के चक्कर में इन कुर्सियों पर अभी से जम गये थे। झील बड़ी थी और इसके समूचे अर्धवृताकार किनारे पर शामियाना लगा था। धीरे धीरे करके लोग आते जा रहे थे एसे में हमने भी कुर्सियों पर कब्जा करना ही उचित समझा। धूप तेज थी, शामियाने के बावजूद अगली पंक्तियों में बैठे लोगों को धूप झेलनी ही पड़ रही थी, धूप से बचने के लिये पीछे बैठना पड़ता और पीछे कोई जाना चाहता नहीं। हम भी इसी लाचारी में धूप का प्रकोप झेल रहे थे। हमारे आस पास अधिकांशत: चीनी मूल के युवा-युवतियां ही बैठे थे। हमारे एकदम पास एक युवा प्रेमी खुलेआम इस तरह प्रेमालाप कर रहा था कि हमें ही शर्म आ रही थी।
धीरे धीरे सारी कुर्सियां भर गई। धूप भी मद्धिम पड़ गई और शो शुरू हो गया। झील के बीचों बीच पांच-सात डोल्फीन मछलियां अपने करतब दिखा रही थी मगर यह दृश्य इतना दूर था कि ढंग से दिखाई भी नहीं दे रहा था। इसके पश्चात् कुछ डोल्फिनों ने किनारे के पास अपने करतब दिखाये। इनमें दर्शकों में से भी लोगों को बुलाया गया और उन्हें झील में उतारा गया। डोल्फिनों ने इनके साथ कई करतब किये जिससे सब लोगों को बहुत मजा आया। इन लोगों ने डोल्फिनों को मछलियां भी खिलाई। कुछ मिलाकर यह शो ठीक ठाक ही था मगर लॉस वेगास तथा अन्य स्थानों पर स्थित सी वल्र्ड में दिखाये जाने वाले समुद्र के नीचे के दृश्यों के मुकाबले यह कुछ भी नहीं था।
इस शो की समाप्ति के पश्चात् हमने वापस बस पकड़ी और समुद्र किनारे स्थित सिलोसा बीच पर आ गये। बीच बहुत लम्बा था। यहां पर तरह तरह के खेल व राइड्स उपलब्ध थी। पूरे बीच की सैर करवाने के लिये निशुल्क ट्रामें चल रही थी जो दोनों तरफ से खुली थी। इनमें बैठा प्रत्येक यात्री बाहर का नजारा आसानी से देख सकता है। एक दिन पूर्व जू में जैसी ट्रामें देखी थी उनसे यह बेहतर थी। हम भी इस ट्राम में बैठ गये और पूरे सिलोसा बीच का चक्कर लगा आये। ट्राम जगह जगह रूक भी रही थी जहां पर यात्री उतर रहे थे तो नये भी चढ़ रहे थे। हम तो जहां तक ट्राम गई वहां तक गये और वापस लौट कर उसी जगह आ गये जहां से रवाना हुए थे। (जारी)

सुदूर पूर्व यात्रा संस्मरण-११८

सरकारी कामकाज में अनुकरणीय सरलता
थोड़ी देर विचार कर हम सबने यही तय किया कि जो लगेंगे, लगेंगे, राइड तो लेनी ही है। टिकिट लेने काउन्टर पर गये तो टिकिट खिड़की पर बैठी लड़की से एक बार फिर मैंने प्रार्थना की कि हम सब वरिष्ठ नागरिक हैं, अगर कोई रियायत संभव हो तो दे दें। लड़की ने कहा कि यह उसके हाथ में नहीं है, अगर  सिंगापुर पर्यटन का एसएमएस आ जाता है तो वह दो टिकिट पर दो वरिष्ठ नागरिकों को फ्री कर देगी। हमने कहा कि उन्हें तो पता ही नहीं है तो वे कैसे  एसएमएस करेंगे। लड़की बोली, आप उनको मेसेज दे दो, अगर उधर से एसएमएस आ गया तो ठीक वरना आप पूरे टिकिट ले लेना। मैंने सोचा यह सब इतना आसान थोड़े ही है। हमारे पास उनका नम्बर भी नहीं था। मैंने लड़की को अपना फोन देते हुए कहा कि आप मेसेज दे दो। उसने फोन लिया और पूछा कि आप कितने हो, हमने बताया  छ:, तो बोली छ: पर तीन फ्री हो जायेंगे मैंने कहा ठीक है, आप ट्राई करिये।
लड़की ने फोन में कुछ टाईप किया और एसएमएस कर वापस फोन हमें देने लगी, मैं फोन पकडूं उसके पहले ही उधर से जवाब आ गया, लड़की ने वापस फोन अपने हाथ में लेकर मेसज पढ़ा और कहा कि आपको ३ टिकिट पर ३ वरिष्ठ नागरिक फ्री मिल जायेंगे, यह कह कर उसने ३ टिकिट के पैसे मांगे। मैंने झट से दे दिये। सभी छ: टिकिट हाथ में  लेते हुए मैं अचरज कर रहा था कि कितनी आसानी से सारा काम हो गया। न तो इन्होंने हमारे आयु प्रमाण पत्र मांगे, न पासपोर्ट देखे सिर्फ शक्लों के आधार पर और महज एक एसएमएस पर सब हो गया। अपने यहां तो सरकारी कामकाजों में लालफीताशाही का आलम यह है कि इस तरह का काम दो चार रोज में भी नहीं हो पाये। हद तो तब हो जाती है जब दिखते हुए बूढ़ों को भी तब तक वरिष्ठ नागरिक नहीं माना जाता जब तक वे आयु प्रमाण पत्र पेश नहीं कर दें। एक बार की बात है मैं ट्रेन से सफर कर रहा था, हमारे डिब्बे में एक वृद्ध दम्पत्ति भी थे, इन्होंने वरिष्ठ नागरिकों का रियायती टिकिट ले रखा था पर इनका आयु प्रमाण पत्र भूलवश घर पर ही रह गया था। टिकिट चेकर आया और उसने प्रमाण पत्र मांगा, दम्पत्ति समेत डिब्बे के कई अन्य यात्रियों ने चेकर से अनुनय विनय की मगर वह नहीं माना और जुर्माना वसूल कर ही आगे बढ़ा। सब कह रहे थे कि- साफ  दिखाई दे रहा है कि ये लोग ६० साल से ज्यादा हैं, पर चेकर टस से मस नहीं हुआ। किसी ने उस चेकर से पूछ लिया  कि यदि कोई २५ साल का युवक ६० साल की उम्र का प्रमाण पत्र दे दे तो क्या तुम मान जाओगे इस पर वह बोला युवक को बूढ़ा कैसे मान सकते हैं, तब सभी ने उसे यही समझाया कि युवक को बूढ़ा नहीं मान सकते तो बूढ़े को तो बूढ़ा मानो पर उसकी समझ में नहीं आया।
टिकिट लेकर हम स्काई टावर की राइड  की तरफ बढ़े। इसकी क्षमता ७२ लोगों की थी इसलिये हमें प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। अन्दर प्रविष्ठ हुए तो यह एक गोलाकार गलियारेनुमा बना केबिन था जिसमें एक तरफ सीटें लगी हुई थी दूसरी तरफ कांच था। एक बार तो हमने पूरे गलियारे का चक्कर लगा लिया फिर एक जगह आकर बैठ गये। यह गोल केबिन  आठ फीट व्यास के एक गोल खंभे में पिरोया हुआ था। थोड़ी ही देर में केबिन गोल गोल घूमने लगा जिससे हमें चारों तरफ का दृश्य दिखाई देने लगा। अब घूमते हुए ही यह धीरे धीरे उपर उठने लगा। अब आस पास का दृश्य दिखाई देने लगा। ज्यूं ज्यूं यह उपर उठता गया दृश्य का दायरा बढ़ता गया इसके लगतार घूमते रहने से दृश्य भी चारों तरफ का दिखाई दे रहा था। अन्तत: यह ४३० फीट की ऊं चाई पर पहुंच गया और धीरे धीरे घूमने लगा। अब समूचे सिंगापुर का विहंगम दृश्य हमारे सामने था, हर तरफ से और हर कोण से हम इस दृश्यावली का अवलोकन कर सकते थे। यह बहुत ही सुखद अनुभूति थी। थोड़ी देर घूमते रहने के बाद वापस धीरे धीरे यह नीचे उतरने लगा।
नीचे उतरे तो जोन हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने कहा-जल्दी चलो, शो का टाईम हो गया है। हम उसके पीछे पीछे चल पड़े। हम एक थियेटर में प्रविष्ठ हुए। यहां ४-डी फिल्म का शो था। ३-डी फिल्में तो अपने यहां भी बनती हैं पर उसके लिये अलग से थियेटर बनाने की आवश्यकता नहीं होती, सामान्य थियेटरों में भी ३-डी फिल्में चल जाती हैं पर ४-डी फिल्मों के लिये अलग से थियेटर बनाने की आवश्यकता होती है जिससे दर्शकों को एसा लगे कि पर्दे पर जो कुछ हो रहा है वह उसके आस पास ही घट रहा है और वह भी उसका एक हिस्सा है।
हाल में प्रवेश करने से पहले हमें विशेष चश्में दिये गये। फिल्म अमरीकी डाकुओं की एक कामेडी थी। इसके दौरान सचमुच एसा लग रहा था जैसे हम भी इसके एक भाग हों। फूलों का दृश्य आया तो समूचा हॉल उन फूलों की सुगन्ध से महक उठा, एक्शन दृश्यों में भी एसा लगता था जैसे हमला हम पर ही हो रहा हो, दर्शक इन वारों से बचने अचानक पीछे हट जाते और फिर अपनी भूल का एहसास होते ही खिलखिला पड़ते। फिल्म में फुहार हुई तो वाकई सबको फुहार झेलनी पड़ी और कपड़े गीले हो गये, एसे ही जमीन पर जानवर रेंग रहे थे तो सबको अपने पैरों में गुदगुदी महसूस हुई और कई लोगों ने अपने पैर उपर कर लिये तो कोई पांव उपर कर ही कुर्सी पर बैठ गया। सभी दर्शकों को यहां बहुत मजा आया और हंसते हंसते बाहर निकले।
जोन बाहर ही खड़ा था। अब हमें ओशन पार्क जाना था। इसके लिये बस पकडऩी थी। सेन्टोसा द्वीप बहुत बड़ा है इसलिये इधर उधर जाने के लिये यहां आंतरिक बस सेवा है, इसके जगह जगह बस स्टोप बने हुए हैं। हम एक बस स्टोप पर खड़े  हो गये। यहां अन्य लोग भी थे, बस आई और हम चढऩे लगे तो पता चला कि यह बस ओशन पार्क नहीं जायगी। दरअसल ओशन पार्क की बसों का स्टोप सड़क की दूसरी तरफ था। जोन अब हमें वहां ले गया। शीघ्र ही बस आई और हम उसमें चढ़ गये। बस विभिन्न स्थानों का चक्कर लगाती  हुई आगे बढ़ी। द्वीप पर चारों तरफ घूमने का यह अच्छा साधन था। इसका अलग से कोई शुल्क भी नहीं था।  ओशन पार्क इसका अन्तिम स्टोप था। यहां हम सब उतर गये। (जारी)